उत्तर प्रदेश के आठ आकांक्षी जनपदों में से एक सोनभद्र... और उसमें बसा एक ब्लॉक चतरा..... चतरा के ठीक बीच में कहीं धुंधला सा दिखता एक कस्बा ‘रामगढ़’... अजी शोले वाला रामगढ़ नहीं...लेकिन कई संकेतकों में उससे कम भी नहीं।
पिछली कई सर्द रातों से मिट्टी के एक रंग बिरंगे घर में जुगनूओं से दोस्ती हो गई है और पूरी रात मच्छरों की लोरियों के साए में कई सपने खुली आंखों से देख चुका हूं। सुबह सवेरे प्लास्टिक की बोतलों में पानी लेके खेत खलियानों में रफा हालत करने जाते बच्चे, बुजुर्ग एवं नौजवान स्वच्छ भारत के अपवादों में अपना आंकड़ा दर्ज कराने में कहां पीछे हटने वाले हैं....!!
रामगढ़ की रूप रेखा को परिभाषित करना उतना ही मुश्किल है जितना ‘नियंत्रण रेखा’ और ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ के मध्य अंतर कर पाना। विस्तृत रूप से कहा जाए तो रामगढ़ के बीचों बीच बना शीतला माता का मंदिर जिसने ठीक बांट दिया है रामगढ़ को आज़ादी से पहले के हिंदुस्तान और उसके बाद के हिंदुस्तान में चूंकि तुलना की जाए तो पूर्व का रामगढ़ चांद पर अपने आशियाने को बसाने के लिए मिसाइलें निर्मित कर रहा है वहीं पश्चिम में बसा रामगढ़ अपनी दो जून की रोटी के जुगाड़ में नगवा के पहाड़ों से भटकते भटकते रामगढ़ आ पहुंचा। रामगढ़ के बीचों बीच से जाती सड़क नेताओं द्वारा रौंदी गई जमीनों पर भीतिचित्र के निशानों को समेटे बैठी है... थोड़ी दूर चलने पर बाईं तरफ बना खण्ड शिक्षा अधिकारी का ऑफिस किश्तों पर सांस ले रहा है जो व्यक्त करता है कि रामगढ़ में शिक्षा विभाग किन बैसाखियों के सहारे चल रहा है, वहीं से 200 मीटर की दूरी पर बना पन्नूगंज थाना इतिहासिक कारणों से विवादित होता आया है... थाने के अंदर घुसता हर प्राणी लश्कर–ए–तैयबा के जैसा निगरानी में रखा जाता है! वहीं सर्दी की तीखी धूप सेकता पुलिस विभाग कोसे जा रहा है सरकार को अपनी पगार न बढ़ पाने पर।
रामगढ़ की 6 आशा कार्यकर्ता 2 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं 1 सहायक नर्स दाई ने मिलकर 1 गांधी फैलो के लिए घर ढूंढने में एक सप्ताह तक अपनी दिमाग की नसों को सींचने में लगाए रखा। प्रतिदिन अपने बेटे की भांति मुझसे बढ़ता उनका लगाव मेरे अंदर वात्सलय की नदियों का परवाह खोलने में सक्षम रहा जिसका मुकाबला दहाई के आंकड़े जितना दूर बना धंधरोल बांध भी न कर पाए।
आटो मार्केट में चल रही प्रतियोगिता में एक टेम्पो को सवारियों से भरवाने पर मुझे मिलने वाले प्रति टेम्पो 10 रुपए हर महीने आने वाले स्टाइपेंड से कहीं ज्यादा कीमती लगे।
मुसहर बस्ती की महिलाओं को मौसी, चाची, और काकी आदि कहते कहते सीख लिया कटनी करने का एक अटूट गुण जो शायद मुश्किल है रसोई में गोल रोटी बनाने से भी कहीं ज्यादा।
बीते 20 दिनों से रामगढ़ में रहते हुए मैं तरह तरह की गतिविधियों में जापानी भाषा की इकिगाई को खोजता रहा इस बात से अंजान कि बीते चार वर्षो से नीति आयोग और पीरामल फाउंडेशन के विद्वान हर बार भूल जाते हैं रामगढ़ के डीह बाबा का आशीर्वाद लेना।
पूरण राम
गाँधी फैलो
सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)
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